न्यूक्लियर हथियार हासिल करने की कोशिश कर रहे ईरान पर 2020 बेहद भारी साबित हुआ। इस साल उसने तीन बेहद अहम किरदारों को गंवा दिया। तीनों की ही हत्या हुई। सबसे पहले स्पेशल फोर्स चीफ जनरल कासिम सुलेमानी की बगदाद में हत्या हुई। इसके बाद अलकायदा छोड़कर ईरान का मोहरा बना अबु मोहम्मद अल मासरी मारा गया। शुक्रवार को न्यूक्लियर साइंटिस्ट मोहसिन फखरीजादेह को कत्ल कर दिया गया।
30 नवंबर को फार्स न्यूज एजेंसी ने खुलासा किया कि फखरीजादेह की हत्या रिमोट कंट्रोल वाली मशीन गन से हुई थी। यह गन किसी अन्य कार से ऑपरेट हो रही थी। ईरान का आरोप है कि अमेरिका और इजराइल की खुफिया एजेंसियों ने इन हत्याओं को अंजाम दिया। हालांकि, अब तक अल मासरी पर उसने औपचारिक तौर पर कुछ नहीं कहा। यहां इस मामले को समझने की कोशिश करते हैं।
विवाद की जड़
- करीब 20 साल से ईरान एटमी ताकत हासिल करने की कोशिश कर रहा है। अमेरिका समेत पश्चिमी देश, इजराइल और अरब वर्ल्ड को लगता है कि अगर ईरान ने न्यूक्लियर हथियार बना लिए तो इससे दुनिया को खतरा पैदा हो जाएगा।
- 2010 में ईरान को रोकने के लिए यूएन सिक्योरिटी काउंसिल, यूरोपीय यूनियन और अमेरिका ने पाबंदियां लगाईं।
- 2015 में ईरान का इन शक्तियों से समझौता हुआ। ज्यादातर पाबंदियों से उसे राहत मिली।
- जनवरी 2020 में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने समझौता रद्द किया। ईरान पर सख्त प्रतिबंध लगाए। ये कोरोना दौर में भी जारी हैं।
एटमी जुनून
दो महीने पहले इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (IAEA) ने एक रिपोर्ट जारी की। इसमें बताया गया कि ईरान के पास इस वक्त 2105 किलोग्राम एनरिच यूरेनियम है। अंतरराष्ट्रीय नियमों के मुताबिक, यह 300 किलोग्राम से ज्यादा नहीं हो सकता। ईरान ने दावा किया कि उसके पास लेटेस्ट सेंट्रीफ्यूज भी हैं जो यूरेनियम को एनरिच करते हैं। एनरिच यूरेनियम ही न्यूक्लियर एनर्जी या एटमी हथियार बनाने के काम आता है। हालांकि, एक्सपर्ट्स मानते हैं कि ईरान अब भी एटमी ताकत बनने से बहुत दूर है। क्योंकि, उसके पास बाकी तकनीक नहीं है।
ईरान से किसको, क्या दिक्कत?
अमेरिका : अमेरिका के अरब देशों और इजराइल से करीबी रिश्ते हैं। कुछ देशों में उसके मिलिट्री बेस हैं। अमेरिका को लगता है कि ईरान ने एटमी ताकत हासिल कर ली तो अरब देशों पर उसका दबदबा काफी बढ़ जाएगा।
अरब देश : सुरक्षा और हथियारों के लिए अरब देश 95% तक अमेरिका पर निर्भर हैं। ईरान शिया जबकि अरब देश सुन्नी बहुल हैं। अरब देशों की शाही हुकूमतों को लगता है कि ईरान एटमी ताकत बन गया तो वो इसका इस्तेमाल उनके खिलाफ कर सकता है।
इजराइल : अरब देशों के लिए इजराइल पहले ईरान की तरह ही दुश्मन देश था। अब बहरीन और यूएई के बाद सऊदी अरब भी उसके करीब आ रहा है। अरब देशों के पेट्रो डॉलर और इजराइल की टेक्नोलॉजी-मिलिट्री पावर ईरान को रोकने में लगे हैं। ईरान और इजराइल के रिश्ते अमेरिका, फिलिस्तीन और अरब देशों की वजह से बिल्कुल खत्म हो चुके हैं। वे दुश्मन देश हैं।
CIA और मोसाद
ईरान का आरोप है कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA और इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद मिलकर उसे कमजोर करने की साजिश रच रही हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स ने हालियों दो रिपोर्ट्स में इसका खुलासा भी किया है।
तीन कत्ल : कौन, कब और कैसे मारा गया?
1. जनरल कासिम सुलेमानी : ये ईरान की स्पेशल फोर्स के कमांडर इन चीफ थे। ईरान जनता के बीच राष्ट्रपति हसन रूहानी से ज्यादा लोकप्रिय थे। 3 जनवरी की रात सीक्रेट विजिट पर इराक की राजधानी बगदाद पहुंचे। CIA ने कार में बैठते वक्त रॉकेट हमले में सुलेमानी को मार गिराया। ईरान में राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया। अमेरिका को बदला लेने की धमकी दी। अब तक कुछ नहीं हुआ।
2. अबु मोहम्मद अल मासरी : अल कायदा में नंबर दो था। तेहरान में हबीब दाऊद के नाम से छिपा था। लादेन का समधी था। 7 अगस्त को कुछ लोगों ने मासरी और उसकी बेटी को कार में ढेर कर दिया। ईरान ने मामला दबाने की कोशिश की। लेकिन, न्यूयॉर्क टाइम्स और CNN ने साफ कर दिया कि मासरी को मोसाद के सीक्रेट एजेंट्स ने मारा है। ईरान अब तक चुप है।
3. मोहसिन फखरीजादेह : ईरान के एटमी प्रोग्राम के हेड थे। 27 नवंबर को तेहरान में कुछ लोगों ने उन्हें कार में मार गिराया। ईरान का आरोप है कि यह काम मोसाद ने किया है। 2010 से 2012 के बीच ईरान के चार और न्यूक्लियर साइंटिस्ट्स मारे गए थे। ये सभी मोहसिन के सहयोगी थे। अमेरिका और इजराइल अब तक मोहसिन की हत्या पर कुछ बोलने तैयार नहीं हैं।
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